[ 310 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
श्लोक क्र.
[ 10 ] तृतीय काव्यानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास ...
[ ग़जल के रूप में ]
अल्लाह मियां आपने , क्या गजब किया |
इन्सान की फ़ितरत में मुसीबत सबब किया ||
फ़िक्र में रोज़ी के भटका तमाम उम्र.,
ज़न्नत भी नहीं दी ,की तुझे याद कब किया ||
अक्ल तो दे दी कि तेरा नाम लेना है ,
पर नौंन ,तेल ,लकड़ी का ही काम सब किया ||
कितनी बनादी फ़िक्र खुराको मकान की ,
गोया आदमी के वास्ते क्या मतलब किया ||
जब दांत थे तब तो चने ही न थे ,
और दांत नहीं चनों को पैदा ही तब किये ||
व्यालों [ सांप की एक जाति }को दे दी हवा , जानवर को दे दी घास,
,पर आदमी के लिए क्या ? तूने रब किया ||
डॉ.ओ.पी.व्व्यास
[ 11/9 / 1996 ]
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भर्तृहरि वैराग्य शतक
श्लोक क्र.
[ 10 ] तृतीय काव्यानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास ...
[ ग़जल के रूप में ]
अल्लाह मियां आपने , क्या गजब किया |
इन्सान की फ़ितरत में मुसीबत सबब किया ||
फ़िक्र में रोज़ी के भटका तमाम उम्र.,
ज़न्नत भी नहीं दी ,की तुझे याद कब किया ||
अक्ल तो दे दी कि तेरा नाम लेना है ,
पर नौंन ,तेल ,लकड़ी का ही काम सब किया ||
कितनी बनादी फ़िक्र खुराको मकान की ,
गोया आदमी के वास्ते क्या मतलब किया ||
जब दांत थे तब तो चने ही न थे ,
और दांत नहीं चनों को पैदा ही तब किये ||
व्यालों [ सांप की एक जाति }को दे दी हवा , जानवर को दे दी घास,
,पर आदमी के लिए क्या ? तूने रब किया ||
डॉ.ओ.पी.व्व्यास
[ 11/9 / 1996 ]
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