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25 नव॰ 2016

काले धन का गंगा स्नान .हें काले धन, आपको, शुद्ध कर रहे मोदी ? -हास्य व्यंग्य -डॉ.ओ.पी.व्यास

हास्य व्यंग्य कविता  [डॉ'ओ.पी.व्यास ]
[विशेष कविता ...काले धन का गंगा स्नान हेमाद्री संकल्प पाप उतारने के लिए ]
हे, काले धन, आपको, शुद्ध कर रहे, मोदी |
नहला रहे हैं, धो रहे हैं, जो बुद्धि हुई थी औंधी ||
कूट रहे हैं, पीट रहे हैं, गंगा जी में डाल रहे हैं |
अच्छी तरह खंगाल रहे हैं, मैल चढ़ा जो, निकाल रहे हैं ||
हेमाद्री, स्नान, करा कर, पञ्च गव्य, पंचामृत को पिला कर |
सारे तीर्थों में नहला कर,  सप्त सिंधु और सभी सरोवर,
छोटी बड़ी सभी नदियों में, कूप कुण्ड, और पोखर में,

 छोटी-बड़ी हैं जो भी , हौदी |
हे, काले धन, आपको, शुद्ध कर रहे मोदी || 
नहला रहे हैं, धो रहे हैं, जो बुद्धि हुई थी औंधी ||
इन सब जल से, खूब मल मल के, निकाल के मल को |
फिर शुद्ध वस्त्र में, हो खूब चकाचक,आना देश में कल को ||
अब निखरेगा, खार उतरेगा, स्वर्ण चमकेगा, तप के आग में |
नया देवता ,अब प्रकटेगा, आयेगी दम देश राग में ||
जैंसे बालक, जब है नहाता, रोता है, कितना चिल्लाता|
माता उसको ,दुश्मन लगती, माँ की महिमा जान ना पाता ||
मगर, बाद में, पूरी उम्र भर, माता के गुण गाता रहता|
माँ अच्छी है, माँ देवी है, माता की स्तुति ,वह करता ||
फिर ,बाद में तन कर, अफसर बन कर, कहता फिरता, माँ ने मेरी बुद्धि शोधी |
बस वैंसे ही सब प्रतिरोधी, बोलेंगे ,बाद में मोदी, मोदी, मोदी, मोदी ||

[ डॉ.ओ.पी.व्यास 25 / 11 / 2016 शनिवार]
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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद