भर्तृहरि नीति शतक
काव्यानुवाद . श्लोक क्र.[ 90 ]..डॉ. ओ.पी.व्यास
कर्म के ही बंधन से करता ,
हर मनुष्य सुख दुःख का भोग |
जैंसा जिसका कर्म होय है ,
वैंसा बने बुद्धि का योग ||
लेकिन फिर भी बुद्धिमान का ,
होता है यह ही कर्तव्य |
काम करें सब , सोच समझ कर ,
फिर, जो भी होना, हो, भवितव्य ||
[ 90 ]
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काव्यानुवाद . श्लोक क्र.[ 90 ]..डॉ. ओ.पी.व्यास
कर्म के ही बंधन से करता ,
हर मनुष्य सुख दुःख का भोग |
जैंसा जिसका कर्म होय है ,
वैंसा बने बुद्धि का योग ||
लेकिन फिर भी बुद्धिमान का ,
होता है यह ही कर्तव्य |
काम करें सब , सोच समझ कर ,
फिर, जो भी होना, हो, भवितव्य ||
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