[ 309 ] / [ 10 ] /प्रथम /12 / 9 / 1996
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्यानुवाद ...
डॉ.ओ.पी.व्यास
हिंसा शून्य , यत्न के बिन ही ,
व्यालों [ सर्पों की एक जाती ] का भोजन है वायु |
पशु भी तृण अंकुर खा जीवित ,
भूमि शयन कर काटें आयु ||
पर मनुष्य सब भांति योग्य जो ,
वृत्ति बनी उनकी ऐंसी |
गुण समाप्त हों अन्वेषण में ,
आयु कटे हीरे जैंसी ||
....................................................................................
[ 309 ] [10 ] /द्वितीय ...
तुमने किया विधाता क्या |
व्याल [ सर्प की एक जाति ] का भोजन ख़ास हवा ||
व्याल हवा खा कर ज़िन्दा |
जिसमें मेहनत ना हिंसा ||
सभी जगह पर हवा है व्याप्त |
सुलभ सब जगह स्वयं है प्राप्त ||
पशुओं का भोजन है घास |
बिस्तर उनका धरती ख़ास ||
पर मनुष्य जिनकी बुद्धि |
विश्व सिंधु पारक शक्ति ||
जिन्हें कार्य हैं सब सम्भव |
उन्हें दिया ऐंसा अनुभव ||
उनकी वृत्ति बनीं ऐंसी |
उम्र कटे हीरे जैंसी ||
इच्छित वस्तु नहीं हो प्राप्त |
अजब न्याय विधि का है व्याप्त ||
[ 10 ] द्वितीय
.......................................................................
तृतीय ...
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्यानुवाद ...
डॉ.ओ.पी.व्यास
हिंसा शून्य , यत्न के बिन ही ,
व्यालों [ सर्पों की एक जाती ] का भोजन है वायु |
पशु भी तृण अंकुर खा जीवित ,
भूमि शयन कर काटें आयु ||
पर मनुष्य सब भांति योग्य जो ,
वृत्ति बनी उनकी ऐंसी |
गुण समाप्त हों अन्वेषण में ,
आयु कटे हीरे जैंसी ||
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[ 309 ] [10 ] /द्वितीय ...
तुमने किया विधाता क्या |
व्याल [ सर्प की एक जाति ] का भोजन ख़ास हवा ||
व्याल हवा खा कर ज़िन्दा |
जिसमें मेहनत ना हिंसा ||
सभी जगह पर हवा है व्याप्त |
सुलभ सब जगह स्वयं है प्राप्त ||
पशुओं का भोजन है घास |
बिस्तर उनका धरती ख़ास ||
पर मनुष्य जिनकी बुद्धि |
विश्व सिंधु पारक शक्ति ||
जिन्हें कार्य हैं सब सम्भव |
उन्हें दिया ऐंसा अनुभव ||
उनकी वृत्ति बनीं ऐंसी |
उम्र कटे हीरे जैंसी ||
इच्छित वस्तु नहीं हो प्राप्त |
अजब न्याय विधि का है व्याप्त ||
[ 10 ] द्वितीय
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तृतीय ...