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17 मार्च 2017

प्राक्कथन भर्तृहरि शतक [काव्यानुवाद|] ...डॉ.ओ.पी..व्यास गुना म.प्र.

भर्तृहरि  शतक [काव्यानुवाद ...डॉ.ओ.पी.व्यास]
प्राक्कथन
24 / 7 / 1996
[भाग 1]
धन्य धन्य नगरी अवंतिका[1] जहां हुए भर्तृहरि  महाराज |
परम दयालु , प्रजा  वत्सल, योग शिरोमणि, योगी राज||

[ 1 ]
विद्वत्ता में परम अग्रणीविक्रमादित्य हुए लघु भाई |
पिंगला थीं महारानी उनकी, घटना कुछ ऐंसी बन आई ||
गोरख नाथ को गुरु बनाया, क्षण में हट गई मन की काई|
तीन  शतक लिख कर भर्तृहरि ने, जग को सच्ची राह दिखाई||
इनमें जो भी ज्ञान भरा है, मणि जैसा ही चमकता आज|
धन्य धन्य नगरी अवंतिका, जहां हुए भर्तृहरि  महाराज|
परम दयालु , प्रजा वत्सल, योग शिरोमणि , योगीराज||
[ २  ]
योगी राज हम शरण  आपकी, आपको जाना यह सौभाग्य|
कुछ प्राणी जो नहीं जानते, यह  तो है  उनका दुर्भाग्य||
पूर्व जन्म कृत पुण्यों से हीमिलता उतना जितना भाग्य|
राग द्वेष में डूबे जन को, सच्चा  मार्ग  दिखा वैराग्य||
कर दीजे अब कृपा " व्यास" पर, बिगड़े  हुए सुधारो काज|
धन्य धन्य नगरी अवन्तिकाजहां हुए भर्तृहरि महाराज |
परम दयालु, प्रजा वत्सल, योग शिरोमणि, योगी राज ||
भाग २]
महाराजा भर्तृहरि के वैराग्य लेने का कारण
श्री गोरख नाथ ने कहा भर्तृहरि को,एक अमर फल देकर |
राजन आप अमर होओगे फल, इस अमर को खाकर ||
भर्तृहरि ने सोचा मैं अमर हो,रहूँगा कैसे जीवित |
पिंगला रानी बूढ़ी होगी, होगी काल कवलित ||
इसीलिए राजा ने अमर फल, दिया रानी को जाकर |
यौवन स्थिर रहेगा रानी, फल इस अमर को खाकर ||
और रानी ने वही अमर फल, दे दिया अपने प्रिय को |
उस प्रिय ने भी वही अमर फल, दिया नगर की तिय[2] को ||
उस वेश्या को राजा के प्रति, बहुत अधिक था प्रेम |
क्योंकि उस  ने नृप भर्तृहरि में, देखा सच्चा नेम ||
इसीलिए वह फल वेश्या ने, दे दिया नृप भर्तृहरि को|
भर्तृहरि जी के नेत्र खुल गये, देख बात बिगरी को ||
उसी समय सब राज पाट तज, हुए गुरु गोरखनाथ के चेले |
बहुत अधिक तप किया भर्तृहरि ने,छोड़ के सभी झमेले||
हम पर भी अब कृपा कीजिए, श्री भर्तृहरि महाराज |
"व्यास " आपकी शरण पड़ा है, बिगड़ी बात बना दो आज||
[भर्तृहरि शतक- काव्यानुवाद डॉ..पी.व्यास ]








[1]  [उज्जैन],
[2] [वेश्या ]]

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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद