भर्तृहरि
शतक [काव्यानुवाद ...डॉ.ओ.पी.व्यास]
प्राक्कथन
[भाग 1]
धन्य
धन्य नगरी अवंतिका[1]
जहां हुए भर्तृहरि महाराज |
परम
दयालु ,
प्रजा वत्सल, योग शिरोमणि, योगी राज||
[
1 ]
पिंगला
थीं महारानी उनकी, घटना कुछ ऐंसी बन आई ||
गोरख
नाथ को गुरु बनाया, क्षण में हट गई मन की काई|
तीन
शतक लिख कर भर्तृहरि ने, जग को सच्ची राह दिखाई||
इनमें
जो भी ज्ञान भरा है,
मणि जैसा ही चमकता आज|
धन्य
धन्य नगरी अवंतिका, जहां हुए भर्तृहरि महाराज|
परम
दयालु ,
प्रजा वत्सल, योग
शिरोमणि , योगीराज||
[
२ ]
योगी
राज हम शरण आपकी,
आपको जाना यह सौभाग्य|
कुछ
प्राणी जो नहीं जानते,
यह तो है उनका दुर्भाग्य||
पूर्व
जन्म कृत पुण्यों से ही, मिलता उतना जितना भाग्य|
राग
द्वेष में डूबे जन को, सच्चा मार्ग दिखा वैराग्य||
कर
दीजे अब कृपा " व्यास" पर, बिगड़े हुए
सुधारो काज|
धन्य
धन्य नगरी अवन्तिका,
जहां हुए भर्तृहरि महाराज |
परम
दयालु,
प्रजा वत्सल, योग शिरोमणि, योगी राज ||
[ भाग २]
महाराजा
भर्तृहरि के वैराग्य लेने का कारण
श्री
गोरख नाथ ने कहा भर्तृहरि को,एक अमर फल देकर |
राजन
आप अमर होओगे फल,
इस अमर को खाकर ||
भर्तृहरि
ने सोचा मैं अमर हो,रहूँगा कैसे जीवित |
पिंगला
रानी बूढ़ी होगी,
होगी काल कवलित ||
इसीलिए
राजा ने अमर फल,
दिया रानी को जाकर |
यौवन
स्थिर रहेगा रानी,
फल इस अमर को खाकर ||
और
रानी ने वही अमर फल,
दे दिया अपने प्रिय को |
उस
प्रिय ने भी वही अमर फल,
दिया नगर की तिय[2] को ||
उस
वेश्या को राजा के प्रति,
बहुत अधिक था प्रेम |
क्योंकि
उस ने नृप भर्तृहरि में, देखा सच्चा नेम ||
इसीलिए
वह फल वेश्या ने,
दे दिया नृप भर्तृहरि को|
भर्तृहरि
जी के नेत्र खुल गये,
देख बात बिगरी को ||
उसी
समय सब राज पाट तज,
हुए गुरु गोरखनाथ के चेले |
बहुत
अधिक तप किया भर्तृहरि ने,छोड़ के सभी झमेले||
हम
पर भी अब कृपा कीजिए,
श्री भर्तृहरि महाराज |
"व्यास " आपकी शरण पड़ा है, बिगड़ी बात बना दो आज||
[भर्तृहरि शतक- काव्यानुवाद –डॉ.ओ.पी.व्यास ]
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
................................................................................................................................