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31 अक्तू॰ 2017

[ 308 ] ..पातंजली ...अष्टाध्यायी महाभाष्य से ...गुरु बृहस्पति जैसे शिक्षक , देव राज इन्द्र से छात्र |...डॉ.ओ.पी.व्यास

[ 308  ]...पातंजली
अष्टाध्यायी  महाभाष्य से ...
हिंदी  काव्यानुवाद .डॉ.ओ.पी.व्यास ...
गुरु बृहस्पति जैंसे शिक्षक ,
                         देव   राज   इन्द्र  से    छात्र |
दिव्य सहस्र वर्ष का अध्ययन ,
                       फिर भी ज्ञान के हुए ना पात्र ||
तब क्या कहिये जिनका जीवन ,
                         केवल मात्र होता 100 साल |
पूर्ण असम्भव , पूर्ण असम्भव ,
                      सोचो कितना अल्प है  काल ||
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मूल श्लोक ...
बृहस्पतिश्च प्रवक्ता इन्द्रश्चाध्येता
दिव्य वर्ष सहस्रम अध्ययन कालो नापि चान्तं जगाम |
किम पुनरध्यतत्वे य सर्वथा
चिरंजीवति वर्ष शतम् जीवति |
अर्थ ...
गुरु ब्रहस्पति जैसे शिक्षक और देवराज इन्द्र जैसे छात्र  तथा दिव्य सहस्र वर्ष  का  अध्ययन काल , फिर भी ज्ञान की सीमा को  नहीं छू सके | तब आज के विषय में क्या कहा जाय | जो सर्वथा दीर्घायु होता है वही 100 वर्ष जी पाता है | अर्थात इतने अल्प काल में क्या ज्ञान प्राप्त कर सकेगा ?
सौजन्य ..श्रीमान प्रेम नारायण जी व्यास गुना म.प्र.
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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद