महाकवि कालिदास की द्रष्टि में ईश्वर { शिव}अद्भुत रचना परमात्मा के तुरंत प्रत्यक्ष दर्शन कीजिए..... अभिज्ञानशाकुन्तल मंगलाष्टक काव्यानुवाद ...डॉ.ओ.पी.व्यास ...
अष्ट मूर्ति शिव
नहीं जानते कहां है ईश्वर ,
सूर्य, चंद्रमा, पञ्च भूत, होता,
यह तो प्रत्यक्ष हैं||
वंदन करते सूर्य देव को,
जो जग को देते स्फूर्ति |
जो अमृत की करते पूर्ति ||
जिसका गुण है शब्द,
जो सारे जग में आच्छादित हैं |
वंदन उन आकाश देव को ,
जो स्वयं ही देव प्रमाणित हैं ||
वंदन हें जल देव ,कि जिनसे ,
प्रथम स्रष्टि का वर्णन है |
जल से तृप्ति सभी की होती ,
होता जग का तर्पण है ||
वंदन है उन अग्नि देव को ,
जो यज्ञ आदि के माध्यम हैं |
वंदन है उन वायु देव को ,
यश फैला जग में अनुपम है ||
हर प्राणी के जीवन दाता ,
पवन प्राण के हो कारण |
सर्वोपरि वंदन पृथ्वी का ,
सभी बीज करतीं धारण ||
वंदन हें यजमान , हें होता ,
आप भी देव महान हो |
यह आठ देव प्रत्यक्ष मूर्तियाँ ,
इनमें मेरा ध्यान हो ||
इन सब से जो युक्त देव शिव ,
कोटि कोटि शिव का वन्दन |
स्मृति हो हर श्वास श्वास में ,
शिव शिव भजे हर स्पन्दन ||
हें शिव प्राप्ति आपकी होवे ,
यही हमारा लक्ष्य है |
नहीं जानते कहां है ईश्वर ,
पर यह देव समक्ष हैं |
सूर्य ,चन्द्रमा, पञ्च भूत, ,
होता यह तो प्रत्यक्ष हैं ||
काव्यानुवाद...डॉ.ओ.पी.व्यास
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