अब कामधेनु ही है भिक्षा |
शिव में ही है अब अचल भक्ति |
अब कौन प्रयोजन विभव तृप्ति ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,[ 413 ]श्लोक क्र.[ 97 ]हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ.ओ.पी.व्यास
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