[ 372 ] ..
श्लोक क्र. [ 60 ]
....जो सकल मनोरथ इच्छा की,
देने वाली लक्ष्मी आये |
पद दलित शत्रु गण हो जायें ,
सम्मान , प्रणय , धन मिल जाये ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद .
.डॉ.ओ.पी.व्यास ..
जो सकल मनोरथ इच्छा की,
देने वाली लक्ष्मी आये |
पद दलित शत्रुगण हो जायें ,
सम्मान , प्रणय धन मिल जाये ||
जीवन जो कल्प पर्यन्त मिले ,
क्या ?लाभ है कुछ भी नहीं दिखता ।
वैराग्य बिना सब व्यर्थ ही है ,
यह लाभ कोई भी नहीं टिकता ||
[ श्लोक क्र. [ 60 ] ..
भर्तृहरि वैराग्य शतक .
.काव्य भावानुवाद ..
.डॉ.ओ.पी.व्यास
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श्लोक क्र. [ 60 ]
....जो सकल मनोरथ इच्छा की,
देने वाली लक्ष्मी आये |
पद दलित शत्रु गण हो जायें ,
सम्मान , प्रणय , धन मिल जाये ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद .
.डॉ.ओ.पी.व्यास ..
जो सकल मनोरथ इच्छा की,
देने वाली लक्ष्मी आये |
पद दलित शत्रुगण हो जायें ,
सम्मान , प्रणय धन मिल जाये ||
जीवन जो कल्प पर्यन्त मिले ,
क्या ?लाभ है कुछ भी नहीं दिखता ।
वैराग्य बिना सब व्यर्थ ही है ,
यह लाभ कोई भी नहीं टिकता ||
[ श्लोक क्र. [ 60 ] ..
भर्तृहरि वैराग्य शतक .
.काव्य भावानुवाद ..
.डॉ.ओ.पी.व्यास
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