[ 390 ]
श्लोक क्र .[ 74 ]
हें पृथ्वी माता , वायु पिता ,
हें तेज मित्र , हें जल सुबंधु ||...
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
.. डॉ.ओ.पी.व्यास
हें पृथ्वी माता , वायु पिता ,
हें तेज मित्र ,हें जल सुबंधु |
हें भ्राता व्योम [ आकाश ], मैं हाथ जोड़ ,
करता प्रणाम , हें कृपा सिंधु ||
जो आपके संग से पूण्य मिला |
उस पुण्य आधिक्य से ज्ञान मिला |||
और उस प्रकाश से महा मोह ,
मेरा सारा ही नष्ट हुआ |
और मैं ब्रह्म लीन होने को अब ,
कृपा आप सब ही से चला |
यदि आप कृपा सब ना करते ,
मैं ब्रह्म को कैंसे पाता भला ||
श्लोक क्र. [ 74 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ.ओ.पी.व्यास
दि . 6 \3 \19 97 शनिवार
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श्लोक क्र .[ 74 ]
हें पृथ्वी माता , वायु पिता ,
हें तेज मित्र , हें जल सुबंधु ||...
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
.. डॉ.ओ.पी.व्यास
हें पृथ्वी माता , वायु पिता ,
हें तेज मित्र ,हें जल सुबंधु |
हें भ्राता व्योम [ आकाश ], मैं हाथ जोड़ ,
करता प्रणाम , हें कृपा सिंधु ||
जो आपके संग से पूण्य मिला |
उस पुण्य आधिक्य से ज्ञान मिला |||
और उस प्रकाश से महा मोह ,
मेरा सारा ही नष्ट हुआ |
और मैं ब्रह्म लीन होने को अब ,
कृपा आप सब ही से चला |
यदि आप कृपा सब ना करते ,
मैं ब्रह्म को कैंसे पाता भला ||
श्लोक क्र. [ 74 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ.ओ.पी.व्यास
दि . 6 \3 \19 97 शनिवार
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