[ 389 ] ...श्लोक क्र. [ 73 ]..
भिक्षा से जीवन यापन कर , संग साथ में अन्नासक्त |
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद..
डॉ.ओ.पी.व्यास ..
भिक्षा से जीवन यापन कर ,
संग साथ में अनासक्त |
इच्छानुसार चेष्टा में निरत ,
जो दान आदि से हैं विरक्त ||
पहिनें वस्त्रों को जीर्ण शीर्ण ,
जो कहीं मार्ग में मिल जाएँ |
कन्था के आसन पर बैठें ,
अभिमान मान में ना आएं ||
सुख, शान्ति ,योग में ,निरत चित्त ,
लगा सदा जिनका रहता |
विरले ही ऐंसे होते हैं ,
सौभाग्य से ही दर्शन होता ||
श्लोक क्र. [ 73 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
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भिक्षा से जीवन यापन कर , संग साथ में अन्नासक्त |
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद..
डॉ.ओ.पी.व्यास ..
भिक्षा से जीवन यापन कर ,
संग साथ में अनासक्त |
इच्छानुसार चेष्टा में निरत ,
जो दान आदि से हैं विरक्त ||
पहिनें वस्त्रों को जीर्ण शीर्ण ,
जो कहीं मार्ग में मिल जाएँ |
कन्था के आसन पर बैठें ,
अभिमान मान में ना आएं ||
सुख, शान्ति ,योग में ,निरत चित्त ,
लगा सदा जिनका रहता |
विरले ही ऐंसे होते हैं ,
सौभाग्य से ही दर्शन होता ||
श्लोक क्र. [ 73 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
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