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श्लोक क्र.,( 72 )
रम्य किरणें चन्द्रमा की,
हरित तृण वाले वे वन ।,
. .भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद.
.डॉ ओ पी व्यास
,रम्य किरणें चन्द्रमा की हरित तृण वाले वे वन ।
वे रम्य सुख सत्संग के ,वे काव्य के चिन्तन ।।
कोप खा कर ]प्रणय से , वह अश्रुओं से पूर्ण मुख ।
चंचल प्रिया का अति सुंदर , नहीं देता क्या ? है सुख ।।,
यह सभी अति रम्य यद्यपि ,पर सभी ना नित्य हैं ।
जब ज्ञान हो जाता है यह , लगता नहीं फिर चित्त है ।।
तब सार से यह हीन , संसार लगता है हमें ।
फिर रम्य इन सब वस्तुओं में , सार ना दिखता हमें ।।
श्लोक क्र ,( 72 )
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ ओ पी व्यास
श्लोक क्र.,( 72 )
रम्य किरणें चन्द्रमा की,
हरित तृण वाले वे वन ।,
. .भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद.
.डॉ ओ पी व्यास
,रम्य किरणें चन्द्रमा की हरित तृण वाले वे वन ।
वे रम्य सुख सत्संग के ,वे काव्य के चिन्तन ।।
कोप खा कर ]प्रणय से , वह अश्रुओं से पूर्ण मुख ।
चंचल प्रिया का अति सुंदर , नहीं देता क्या ? है सुख ।।,
यह सभी अति रम्य यद्यपि ,पर सभी ना नित्य हैं ।
जब ज्ञान हो जाता है यह , लगता नहीं फिर चित्त है ।।
तब सार से यह हीन , संसार लगता है हमें ।
फिर रम्य इन सब वस्तुओं में , सार ना दिखता हमें ।।
श्लोक क्र ,( 72 )
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ ओ पी व्यास