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6 नव॰ 2017

[ 313 ] बोद्धार मत्सर ग्रस्तः...भर्तृहरि वैराग्य शतक ..काव्यानुवाद [ 313 ]...श्लोक क्र. [ २ ] डॉ.ओ.पी.व्यास

[ 313 ]....बोद्धार मत्सर ग्रस्तः प्रभव स्मय दूषिता |  अबोधोअपहृताश्चान्ये  जीर्णमंगे सुभाषितम ||
[नोट - यह  बहुत ही सुंदर श्लोक है जितना चिन्तन करिये आनन्द आएगा .डॉ.ओ.पी.व्यास]
यह दुनिया बंटी है तीन हिस्सों में|हकीकत में है ना कि किस्सों में||.
[1]विद्वान [२]धनवान [3]अज्ञान
  विशेष ..एक बार अमेरिका के प्रसिद्ध विद्वान जौर्ज बर्नार्ड शा ने एक सभा में कहा था, "इस सभा में आधे मूर्ख हैं!" सभी लोग नाराज हो गये थे उन्होंने माफ़ी मांग कर कहा- "नहीं इस सभा में आधे विद्वान् हैं" और सभी एक दम शान्त हो गये थे! 
   महाराजा भर्तृहरि विश्व को 3 हिस्सों में बांटते हैं ...विद्वान, धनवान, अज्ञान[मूर्ख, अज्ञानी]श्लोक.[.२ ] 
श्लोक क्र.[ २ ] ..
भर्तृहरि वैराग्य शतक ...[काव्यानुवाद ..डॉ.ओ.पी.व्यास ]. [ द्वीतीय  ]....

विद्वान् को  विद्या का है मद, धनवानों को धन का है मद |
विद्वान की पूजा कौन करे ? अल्पज्ञ  शेष उनकी है हद ||
अब काव्य सुभाषित कौन सुने ?  मन मारे घर बैठे पण्डित |
मन में ही वृद्ध भई वाणी, सब जीर्ण हो गये गुण मण्डित ||
बहु मूल्य  उक्तियाँ, सुभाषित, तन में ही नष्ट हो जाती हैं |
क्योंकि अल्पज्ञ अज्ञानी  को, नहीं समझ  में आती है ||
विद्वान बुद्धि जीवी जो हैं, ईर्षा, मत्सर से पीड़ित हैं |
अज्ञानी जन  जितने भी हैं,  बस रोटी खाने जीवित हैं

इस धरती की,पलट सकती थी काया | कई बार तुम्हें, कईओं ने समझाया ||
पर तुमने नहीं दिया ध्यान, तुम्हारी समझ [ खोपड़ी ] में नहीं  आया ||
नष्ट हो गयीं कई उक्तियां, सुभाषित, 
विद्वानों  ने भी किसी को कुछ नहीं समझाया, सब किसी के कुछ काम नहीं आया ||
बार बार जन्म लिया , और बार बार नष्ट हो गयी काया ||
[ नष्ट हो गयीं कई उक्तियाँ, सुभाषित  विद्वानों के भी काम नहीं आया |
 [ 3 ] .
.इस धरती की काया को ,हम कई बार पलट सकते थे सब  |
                सूक्ष्म बात यह , मामूली , किसी की  ,बुद्धि में आई है कब ?||
बहुमूल्य उक्तियाँ , सुभाषित विद्वद तन में  हो गयीं  नष्ट |
                         इनकी कमी के कारण  ही धरती पूरी ही हो गयी भ्रष्ट ||
इसलिए सब श्रेष्ठ वस्तु मानव तन में होतीं  हैं नष्ट |
                            कोई इस रहस्य को समझने का नहीं करता कष्ट ||

बुद्धिमान  ईर्षालू , धनवानों को धन का  मद |
  और मूर्ख अल्पज्ञ की अपनी ही रहती है हद ||
इसलिए सुभाषित और श्रेष्ठ है जो ज्ञान |
 विद्वानों के साथ  नष्ट हों नहीं हो ध्यान ||
विद्वानों को विद्या का मद ,धन वानों को धन का है मद | 
विद्वानों की सेवा कौन करे , मूर्खों की अपनी है हद ||
 काव्य , सुभाषित कौन ?  सुने , घर बैठे मन मारे कविगण |
 वाणी मन मांहि भई कुंठित , खतम हो चला सब जीवन ||
जो भी विद्या पास , विद्वान् को अभिमान |
 [ जगत के विद्वान् का आदर करें ,धनवान || ]
 इसलिए उनसे तिरस्कृत ,जगत के विद्वान् ||
पण्डित को है , पांडित्य का मद , धनिक कर्म करते ना सद ||
मूरख की अपनी है हद, विद्वान् विद्याधरों को , विद्या का अभिमान||

विद्वान्  का आदर ना करें जगत के धनवान ||
    उन धनिक से तिरस्कृत जगत के विद्वान् |
शेष जो हैं मूर्ख हैं , साथ है अज्ञान ||
इससे  सुंदर काव्य सुभाषित ,जगत का श्रेष्ठ ज्ञान |
नष्ट होता तन में किसी को नहीं ध्यान ||

विद्वान् को विद्या का है मद , धनवानों को धन का है मद |

 विद्वान् की पूजा कौन करे ,अल्पज्ञ मूर्ख की अपनी हद ||
अब काव्य सुभाषित कौन सुने ,मन मारे घर  बैठे पण्डित |
 वाणी मन माहिं वृद्ध भई , सब जीर्ण हो गये गुण मण्डित ||

         नोट-
  यह श्लोक बहुत सुंदर है इसका जितना चिन्तन किया जाय उतना भाव अधिक स्पष्ट होता है इसलिए इस का काव्य अनुवाद अनेक तरह से किया है जिससे भाव स्पष्ट हो जाए |...धन्यवाद                . डॉ.ओ.पी.व्यास
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      मूल श्लोक ....बोद्धारो मत्सर ग्रस्तःप्रभव स्मय दूषितः |
अबोधोपहृता श्चान्ये  जीर्ण मंगे सुभाषितम ||
                                                              [ २ ]
      अर्थ ...विद्वान् मनुष्य तो अपनी विद्या के अभिमान से ग्रस्त हैं , धनी लोग अपने द्रव्य के गर्व से किसी विद्वान का आदर ही नहीं करते , और शेष अन्य मनुष्य जो हैं , वे अल्पज्ञ हैं , कुछ समझ ही नहीं , इत्यादि कारणों से सुभाषित शरीर में ही नष्ट हो जाते हैं
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                             डॉ.ओ.पी.व्यास नई सड़क गुना [ म.प्र.] भारत  म.प्र . भारत 

भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद