वह कार्तिक पूर्णिमा ही तो थी ? |[ 312 ]...डॉ.ओ.पी.व्यासकार्तिक पूर्णिमा ...
वह कार्तिक पूर्णिमा ही तो थी, जिस दिन औदीच्य बने राजा |
उस दिन से विद्या वैभव का, गुजरात में, बाजा था बाजा ||
घर-घर में मन्त्र उच्चार हुए, हवन हुए उपदेश हुए |
मानव जीवन को पाने के, मानो पूर्ण उद्देश हुए ||
सम्पूर्ण गगन में सुगन्धि थी, वातावरण विशुद्ध हुआ |
दया धर्म संचार हुआ, हर एक वहां पर शुद्ध हुआ ||
जय जय जय शिव की ध्वनि से ही, गुंजित पूर्ण आकाश हुआ |
श्री सम्पन्नता वैभव को, जाने को ना अवकाश हुआ ||
सभी ओर प्रेम , भाई चारे, की ही सुगन्धि छाई थी |
माता सरस्वति के साथ साथ , लक्ष्मी भी धरा पर आईं थीं ||
वैंसे ही सोमनाथ ज्योतिर्लिंग , सारे ही जग में है प्रसिद्ध रहा |
कोहिनूर हीरा शिव के , तृतीय नेत्र में सिद्ध रहा |
ज्योतिर्लिंग सोमनाथ अधर में, बिना सहारे अद्भुत थे |
असली चन्दन के फाटक भी, सुगन्धि हेतु उद्यत थे ||
और सिद्धपुर रूद्र महालय की, छटा तो अत्यंत निराली थी |
भक्तों और तीर्थ यात्रिओ से कोई भी गली ना खाली थी||
गुप्त सरस्वति प्रकट यहाँ, गुर्जर प्रदेश में आईं थीं|
आठों सिद्धि, नवों निधि को भी, अपने ही साथ में लाईं थीं ||
वर्ष 163 तक श्री सम्पन्न , पूर्ण गुजरात रहा |
उसकी महिमा को सदा-सदा, संसार का हर जन गात रहा ||
क्या आज औदीच्य बन्धुओं को, आत्म चिन्तन का अवकाश है ? ||
डॉ.ओ.पी.व्यास
म.प्र 4/11 / 2017 शनिवार