यौवन क्षण भंगुर , चंचल विभूति , यम दन्त में मानव रहता है |
परलोक प्राप्ति के साधन की , फिर भी तो उपेक्षा करता है ||
अहो मनुष्य , तेरी चेष्टा , यह कितनी विस्मयकारी है |
अब तक शिव की महिमा तू ने , क्यों नहीं मूर्ख स्वीकारी है ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,[ 41 5 \ ..श्लोक क्र. [ 99 ..1 ]...
हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ.ओ.पी.व्यास
19 . 3 . 1997 बुधवार
...................................................................................................................................................................