[ 397 ]
श्लोक क्र.[ 81 ] .
.काशी का जीवन ..
भिन्न भिन्न भोजन का बनाना , और खाना उद्यानों में |
तीव्रातितीव्र वही तो तप है , काशी के स्थानों में ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक .
हिंदी .काव्य भावानुवाद .
.डॉ.ओ.पी.व्यास
काशी का जीवन
भिन्न भिन्न भोजन का बनाना ,
और खाना उद्यानों में |
तीव्रातितीव्र वही तो तप है
काशी के स्थानों में ||
यहाँ वस्त्र कौपीन ही केवल ,
अलंकार भिक्षाटन है |
जहां मृत्यु ही कार्य है मंगल ,
धन्य यहाँ का जीवन है ||
श्लोक क्र. [ 81 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
हिंदी काव्य भावानुवाद .
.डॉ.ओ.पी.व्यास ..
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श्लोक क्र.[ 81 ] .
.काशी का जीवन ..
भिन्न भिन्न भोजन का बनाना , और खाना उद्यानों में |
तीव्रातितीव्र वही तो तप है , काशी के स्थानों में ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक .
हिंदी .काव्य भावानुवाद .
.डॉ.ओ.पी.व्यास
काशी का जीवन
भिन्न भिन्न भोजन का बनाना ,
और खाना उद्यानों में |
तीव्रातितीव्र वही तो तप है
काशी के स्थानों में ||
यहाँ वस्त्र कौपीन ही केवल ,
अलंकार भिक्षाटन है |
जहां मृत्यु ही कार्य है मंगल ,
धन्य यहाँ का जीवन है ||
श्लोक क्र. [ 81 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
हिंदी काव्य भावानुवाद .
.डॉ.ओ.पी.व्यास ..
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