[ 384 ] ..श्लोक क्र. [ [ 70 ]
ब्रह्माण्ड मात्र एक मण्डल सा , जहां नहीं मनस्वी मोहित हो |
सफरी मछली उछले कूदे ,पर सागर कभी ना क्रोधित हो ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
ब्रह्माण्ड मात्र एक मण्डल सा ,जहाँ नहीं मनस्वी मोहित हो |
सफरी मछली उछले कूदे , क्या सागर कभी भी क्रोधित हो ||
श्लोक क्र.[ 70 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
ब्रह्माण्ड मात्र एक मण्डल सा , जहां नहीं मनस्वी मोहित हो |
सफरी मछली उछले कूदे ,पर सागर कभी ना क्रोधित हो ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
ब्रह्माण्ड मात्र एक मण्डल सा ,जहाँ नहीं मनस्वी मोहित हो |
सफरी मछली उछले कूदे , क्या सागर कभी भी क्रोधित हो ||
श्लोक क्र.[ 70 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
फूफाजी श्रीमान नन्द लाल जी शर्मा
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