[ 383 ]..श्लोक क्र. [ 69 ..2 ] यह आयु जैसे जल तरंग ,क्षण भंगुर और है अति अस्थिर |
यौवन भी रहता अल्प काल , वह नहीं लौट कर आता फिर ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
यह आयु जैसे जल तरंग , क्षण भंगुर और है अति अस्थिर |
यौवन भी रहता अल्प काल ,वह नहीं लौट कर आता फिर ||
मन के संकल्प , विकल्पों सा , यह धन भी रहता अल्प काल |
वर्षा की बिजली के समान , विषय वासना का है हाल ||
चिर स्थाई सुख नहीं ,हमारा जो भी मिल्न है |
उनसे मिलना मात्र क्षणिक , सुख का साधन है ||
तभी पार कर सकते हैं हम ,भव भय सागर |
रखे ब्रह्म आसक्ति , वही नर होता नागर ||
श्लोक क्र.[69.2 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
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यौवन भी रहता अल्प काल , वह नहीं लौट कर आता फिर ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
यह आयु जैसे जल तरंग , क्षण भंगुर और है अति अस्थिर |
यौवन भी रहता अल्प काल ,वह नहीं लौट कर आता फिर ||
मन के संकल्प , विकल्पों सा , यह धन भी रहता अल्प काल |
वर्षा की बिजली के समान , विषय वासना का है हाल ||
चिर स्थाई सुख नहीं ,हमारा जो भी मिल्न है |
उनसे मिलना मात्र क्षणिक , सुख का साधन है ||
तभी पार कर सकते हैं हम ,भव भय सागर |
रखे ब्रह्म आसक्ति , वही नर होता नागर ||
श्लोक क्र.[69.2 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
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