[ 370 ] ..
श्लोक क्र. [ 5 8 ]
..जब श्री सम्पन्न सुमेरु गिरि ,
प्रलय अग्नि में है खोता |
जब बड़े बड़े ग्राहों का घर ,
महा सिंधु शुष्क होता ||..
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास
जब श्री सम्पन्न सुमेरु गिरि ,
प्रलय अग्नि में है खोता |
जब बड़े बड़े ग्राहों का घर ,
महा सिंधु शुष्क होता ||
जब गिरि धारित धरती भी यह ,
तम को ही प्राप्त हो जाती है |
वह घोर अँधेरे में जाकर ,
प्रलय में ही खो जाती है ||
तब हाथी के करणाग्र तुल्य ,
तन चपल की बातें क्या? करना |
इस तन का भरोसा क्या ?करना ,
जिसकी कि नियति केवल मरना ||
श्लोक क्र. [ 58 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ. ओ.पी. व्यास
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श्लोक क्र. [ 5 8 ]
..जब श्री सम्पन्न सुमेरु गिरि ,
प्रलय अग्नि में है खोता |
जब बड़े बड़े ग्राहों का घर ,
महा सिंधु शुष्क होता ||..
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास
जब श्री सम्पन्न सुमेरु गिरि ,
प्रलय अग्नि में है खोता |
जब बड़े बड़े ग्राहों का घर ,
महा सिंधु शुष्क होता ||
जब गिरि धारित धरती भी यह ,
तम को ही प्राप्त हो जाती है |
वह घोर अँधेरे में जाकर ,
प्रलय में ही खो जाती है ||
तब हाथी के करणाग्र तुल्य ,
तन चपल की बातें क्या? करना |
इस तन का भरोसा क्या ?करना ,
जिसकी कि नियति केवल मरना ||
श्लोक क्र. [ 58 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ. ओ.पी. व्यास
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