[ 369 ]
शुभ सलिला गंगा के जल से ,
शीतल हिम गिरि के वे प्रदेश |
जहां शिलातलों पर विद्या धर ,
बैठे ज्ञान करते निवेश ||
श्लोक क्र. [ 57 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
शुभ सलिला गंगा के जल से ,
शीतल हिम गिरि के वे प्रदेश |
जहाँ शिला तलों पर विद्या धर ,
बैठे ज्ञान करते निवेश ||
क्या ? आज सभी वे लुप्त हुए ,
क्या? वे स्थान नहीं हैं अब |
जो अन्न पराए में रूचि है ,
क्या ? सम्मान नहीं है अब ||
श्लोक क्र. [ 57 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
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शुभ सलिला गंगा के जल से ,
शीतल हिम गिरि के वे प्रदेश |
जहां शिलातलों पर विद्या धर ,
बैठे ज्ञान करते निवेश ||
श्लोक क्र. [ 57 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
शुभ सलिला गंगा के जल से ,
शीतल हिम गिरि के वे प्रदेश |
जहाँ शिला तलों पर विद्या धर ,
बैठे ज्ञान करते निवेश ||
क्या ? आज सभी वे लुप्त हुए ,
क्या? वे स्थान नहीं हैं अब |
जो अन्न पराए में रूचि है ,
क्या ? सम्मान नहीं है अब ||
श्लोक क्र. [ 57 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
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