[ 368 ] .
क्या? क्षुधा मिटाने हेतु अब , कन्दराओं में कन्द मूल नहीं |
क्या ? शान्त तृषा को करने को , पर्वत झरने अनुकूल नहीं ||.
.श्लोक क्र. [ 56 ]..
भर्तृहरि वैराग्य शतक .
.काव्य भावानुवाद ..
.डॉ.ओ.पी.व्यास
क्या? , क्षुधा मिटाने हेतु अब ,
कन्दराओं में कन्द मूल नहीं |
क्या ? , शांत तृषा को करने को ,
पर्वत झरने अनुकूल नहीं ||
क्या ?, नष्ट हुए कन्द, मूल और जल ,
फल की मिठास भी खो गयी क्या? |
वल्कल से युक्त सब वृक्षों की ,
शाखाएं क्षीण भी हो गयीं क्या? |
क्या ?, याचक सारे इसीलिए ,
यूं दर , दर मारे फिरते हैं |
और दुर्विनीत खल पुरुषों के ,
मुख के नित दर्शन करते हैं ||
श्लोक क्र. [ 56 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
15 2 1997
शनिवार
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क्या? क्षुधा मिटाने हेतु अब , कन्दराओं में कन्द मूल नहीं |
क्या ? शान्त तृषा को करने को , पर्वत झरने अनुकूल नहीं ||.
.श्लोक क्र. [ 56 ]..
भर्तृहरि वैराग्य शतक .
.काव्य भावानुवाद ..
.डॉ.ओ.पी.व्यास
क्या? , क्षुधा मिटाने हेतु अब ,
कन्दराओं में कन्द मूल नहीं |
क्या ? , शांत तृषा को करने को ,
पर्वत झरने अनुकूल नहीं ||
क्या ?, नष्ट हुए कन्द, मूल और जल ,
फल की मिठास भी खो गयी क्या? |
वल्कल से युक्त सब वृक्षों की ,
शाखाएं क्षीण भी हो गयीं क्या? |
क्या ?, याचक सारे इसीलिए ,
यूं दर , दर मारे फिरते हैं |
और दुर्विनीत खल पुरुषों के ,
मुख के नित दर्शन करते हैं ||
श्लोक क्र. [ 56 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
15 2 1997
शनिवार
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