[ 367 ]
.क्या ?, संत जनों को रहने को ,रमणीक राज का भवन ना था |
संगीत ना था सुनने को , क्या? प्राण प्रिया का तन ना था ||
.भर्तृहरि वैराग्य शतक
श्लोक क्र. [ 55 ]..
डॉ.ओ.पी.व्यास ..
क्या ?संत जनों को रहने को ,
रमणीक राज का भवन ना था |
संगीत ना था सुनने को ,
क्या? प्राण प्रिया का तन ना था ||
उनने तो जगत को , वायु से ,
हिलती दीपक , छाया जाना |
अति चंचल ज्यों, लौ , की छाया ,
वैसा ही इस , जग को माना |||
इसलिए संत जन ,भवन छोड़ ,
निर्जन वन को मुंह ,मोड़ गये |
कल्याण इसी में ही समझा ,
ममता लगाव सब छोड़ गये ||
श्लोक क्र. [ 55]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
13 2 1997
शनिवार
.......................................................................................................................................................................
.क्या ?, संत जनों को रहने को ,रमणीक राज का भवन ना था |
संगीत ना था सुनने को , क्या? प्राण प्रिया का तन ना था ||
.भर्तृहरि वैराग्य शतक
श्लोक क्र. [ 55 ]..
डॉ.ओ.पी.व्यास ..
क्या ?संत जनों को रहने को ,
रमणीक राज का भवन ना था |
संगीत ना था सुनने को ,
क्या? प्राण प्रिया का तन ना था ||
उनने तो जगत को , वायु से ,
हिलती दीपक , छाया जाना |
अति चंचल ज्यों, लौ , की छाया ,
वैसा ही इस , जग को माना |||
इसलिए संत जन ,भवन छोड़ ,
निर्जन वन को मुंह ,मोड़ गये |
कल्याण इसी में ही समझा ,
ममता लगाव सब छोड़ गये ||
श्लोक क्र. [ 55]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
13 2 1997
शनिवार
.......................................................................................................................................................................