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17 नव॰ 2014

फुलझड़ियाँ

मेरे  द्वारा समय समय पर लिखी गयीं विभिन्न कविताओं के अंश 
फुलझड़ियाँ 


"कुंडली"
वैद्यराज  जब  कवि बने आया  इतना  फर्क ।
सोंफ  छोड़कर  खींचते  श्रोताओं  का  अर्क ।।

श्रोताओं  का  अर्क वर्क  पर  वर्क  सुनाएँ ।
इंजेक्शन  की  जगह  भोंकते अब  कवितायेँ ।।
कह  कवी  ओ .पी. व्यास  थी  यम के  भ्राता  की  छवि। अब  भी  है  कायम  हुए  जब, वैद्यराज  कवि।।
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भजन करो तुम जम के प्यारे जम के दूत ठाडे हैं द्वारे 
कोई काम ना जब आएगा,भजन ही आयेंगे काम तिहारे।
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नों दिन भैय्या खूब मनाई तुमने नोदुर्गा,
दसवें दिन दारू को पीकर काटे सॉ मुर्गा।. 
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जिन्दे में तो देते नहीं हैं ,माता पिता को खाने . 
मरने के बाद पीछे पीछे फेंकत चले मखाने।
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ओ मोरे गाँधी बब्बा, ओ मोरे गाँधी बब्बा . 
आ कर देश बचालो भारत ,गोल हो रहा डब्बा 
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एपीजे अब्दुल कलाम जी 
स्वीकारें मेरा सलाम जी, आये वहां से जहां गये राम जी , 
देश ने वैंसे लिया जम्प जी, सचिन तेदुलकर ने उखाड़े स्टम्प जी ,
पर ले कर कुछ नेता पम्प जी, कर रहे हैं बहुतही हडकम्प जी,
करें देश को ये बदनाम जी, एपीजे अब्दुल कलाम जी 
ऐंसी कोई बनाओ मिसाइल बोएं बबूल और निकलें आम जी , 
एपीजे अब्दुल कलाम जी , स्वीकारें मेरा सलाम जी।
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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद