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5 अक्तू॰ 2014

हे रावण तुम कहाँ मरे हो ?.....डॉ.ओ.पी।व्यास गुना म.प्र.


हे रावण तुम कहाँ मरे हो । 

अमर हुए शिव का वर पाकर, शिव तांडव कर, कर गुजरे हो॥ 
हे रावण तुम कहाँ मरे हो॥

कल देखी पटना की घटना,  भीड़ काहे चाहे ना डटना ॥ 
तुम क्या जले, शुरू हुई छटना, जब भगदड हुई कौन बरे* हो ?  
हे रावण तुम कहाँ मरे हो॥ 

क्योंकि अनुशासन ना सीखा, भौतिक रावण सब को दीखा ॥ 
असली रावण हंसा और चीखा,  उस असली से कहाँ डरे हो ।
हे रावण तुम कहाँ मरे हो॥ 

ज्ञानी समझा समझा हारे,  हर एक साल जलाए बारे ॥ 
असली रावण गए सँभारे, पर बुद्धि में भरे कचरे हो। 
हे रावण तुम कहाँ मरे हो॥ 


[डॉ. ओ .पी .व्यास गुना म.प्र .] 
*जले हो
[ विजया दशमी 5-10-2014 शनिवार ]

भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद