[ 363 ].
.श्लोक क्र.[ 52 ]
..क्षण भंगुर हैं ये सारे सुख |
हो जाओ इनसे शीघ्र विमुख ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक '..
काव्य भावानुवाद .
डॉ.ओ.पी.व्यास ...
..क्षण भंगुर हैं ये सारे सुख |
हो जाओ इनसे शीघ्र विमुख ||
सारे ही सुख ये क्षण भंगुर |
नष्ट करो उनके अंकुर ||
इन सारे ही सुख का त्याग करो |
करुणा , मैत्री , प्रज्ञा ही वरो ||
यदि इन सुख में ही पड़े रहे |
भोगों में ही यदि गड़े रहे ||
जब पाओगे तुम वास नरक |
तब धरे रहेंगे सारे तरक ||
ये मणि माला उनकीं रुन झुन |
तब काम ना आयेंगीं ये धुन ||
जब पहुंचोगे यम के समक्ष |
तब काम ना आयेंगे ये वक्ष ||
तब ना श्रोणी ,ये आयें काम |
वहां काम आयें, शिव ही के नाम ||
श्लोक क्र . [ 52 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास
13 2 1997 बुध वार
.................................................................................................................................................................
.श्लोक क्र.[ 52 ]
..क्षण भंगुर हैं ये सारे सुख |
हो जाओ इनसे शीघ्र विमुख ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक '..
काव्य भावानुवाद .
डॉ.ओ.पी.व्यास ...
..क्षण भंगुर हैं ये सारे सुख |
हो जाओ इनसे शीघ्र विमुख ||
सारे ही सुख ये क्षण भंगुर |
नष्ट करो उनके अंकुर ||
इन सारे ही सुख का त्याग करो |
करुणा , मैत्री , प्रज्ञा ही वरो ||
यदि इन सुख में ही पड़े रहे |
भोगों में ही यदि गड़े रहे ||
जब पाओगे तुम वास नरक |
तब धरे रहेंगे सारे तरक ||
ये मणि माला उनकीं रुन झुन |
तब काम ना आयेंगीं ये धुन ||
जब पहुंचोगे यम के समक्ष |
तब काम ना आयेंगे ये वक्ष ||
तब ना श्रोणी ,ये आयें काम |
वहां काम आयें, शिव ही के नाम ||
श्लोक क्र . [ 52 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास
13 2 1997 बुध वार
.................................................................................................................................................................