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भर्तृहरि वैराग्य शतक
श्लोक क्र 47
जिनने किये समूल नष्ट अपने कर्मों को,
धन्य धन्य ऐंसे पुरुषों को धन्य ।
--जिनने किये समूल नष्ट अपने कर्मों को,
धन्य धन्य ऐंसे पुरुषों को धन्य ।
जिनके हाथ पवित्र पातृ वत ,
भिक्षा अक्षय अन्न ।।
विस्तीर्ण दिशाएँ वस्त्र हैं जिन की ,
पृथ्वी शैय्या जिनकी |
कौन समानता कर सकता है,
पूर्ण विश्व में उनकी ।।
संसर्ग शून्य वृत्ति अन्तस् की,
में रखते जो चाव ||
आत्मा में संतोष जिन्हें है ,
नहीं दीनता भाव ।।
उन जैसा संसार में कहिये,
है कौन दूसरा अन्य ।
जिनने किये समूल नष्ट अपने कर्मों को ,
धन्य धन्य ऐंसे पुरुषों को धन्य ।
जिन के हाथ पवित्र पात्र वत ,
भिक्षा अक्षय अन्न ।।
--भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ ओ पी व्यास
8 7 1997 शनिवार
भर्तृहरि वैराग्य शतक
श्लोक क्र 47
जिनने किये समूल नष्ट अपने कर्मों को,
धन्य धन्य ऐंसे पुरुषों को धन्य ।
--जिनने किये समूल नष्ट अपने कर्मों को,
धन्य धन्य ऐंसे पुरुषों को धन्य ।
जिनके हाथ पवित्र पातृ वत ,
भिक्षा अक्षय अन्न ।।
विस्तीर्ण दिशाएँ वस्त्र हैं जिन की ,
पृथ्वी शैय्या जिनकी |
कौन समानता कर सकता है,
पूर्ण विश्व में उनकी ।।
संसर्ग शून्य वृत्ति अन्तस् की,
में रखते जो चाव ||
आत्मा में संतोष जिन्हें है ,
नहीं दीनता भाव ।।
उन जैसा संसार में कहिये,
है कौन दूसरा अन्य ।
जिनने किये समूल नष्ट अपने कर्मों को ,
धन्य धन्य ऐंसे पुरुषों को धन्य ।
जिन के हाथ पवित्र पात्र वत ,
भिक्षा अक्षय अन्न ।।
--भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ ओ पी व्यास
8 7 1997 शनिवार