345 | श्लोक क्र. 37 ..
क्षण भंगुर जीवन में हमको , करना क्या है , हम तो ना जानें |
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद ..
डॉ. ओ.पी.व्यास ..
क्षण भंगुर जीवन में हमको , करना क्या है , हम तो ना जानें |
क्या गंगा तट पर कर निवास ,करना तप ही श्रेयस्कर मानें ||
अथवा उदार गुण भार्या की , सविनय सेवा का ध्यान करें |
या फिर शास्त्रों का श्रवण करें , या काव्य सुधा रस पान करें ||
डॉ.ओ.पी.व्यास
5 | २ |1997
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क्षण भंगुर जीवन में हमको , करना क्या है , हम तो ना जानें |
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद ..
डॉ. ओ.पी.व्यास ..
क्षण भंगुर जीवन में हमको , करना क्या है , हम तो ना जानें |
क्या गंगा तट पर कर निवास ,करना तप ही श्रेयस्कर मानें ||
अथवा उदार गुण भार्या की , सविनय सेवा का ध्यान करें |
या फिर शास्त्रों का श्रवण करें , या काव्य सुधा रस पान करें ||
डॉ.ओ.पी.व्यास
5 | २ |1997
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