344 | श्लोक क्र. 36 | ..वह भरा हुआ घर द्र्खो तो , रहते थे जिसमें जन अनेक |
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास ..
वह भरा हुआ घर देखो तो ,
रहते थे जिसमें जन अनेक |
कहां गये , वे सब के सब ,
अब वहां रह गया शेष एक ||
वह काल पुरुष ,काली स्त्री ,
मिल साथ विश्व चौसर खेलें |
रात , दिवस दो पांसों से ,
प्राणों की गोटी को ले लें ||
श्लोक क्र. 36
डॉ.ओ.पी.व्यास
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भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास ..
वह भरा हुआ घर देखो तो ,
रहते थे जिसमें जन अनेक |
कहां गये , वे सब के सब ,
अब वहां रह गया शेष एक ||
वह काल पुरुष ,काली स्त्री ,
मिल साथ विश्व चौसर खेलें |
रात , दिवस दो पांसों से ,
प्राणों की गोटी को ले लें ||
श्लोक क्र. 36
डॉ.ओ.पी.व्यास
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