346 | श्लोक क्र . 38 |.
.आयेंगे कभी क्या दिन मेरे ,अच्छे ,अच्छे , सुंदर, सुंदर |
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास ..
आयेंगे कभी क्या दिन मेरे , अच्छे ,अच्छे ,सुंदर ,सुंदर |
हिम गिरि की शिला , पर पद्मासन ,होगी , मेरी गंगा तट पर ||
और कर रहा होऊं ,ब्रह्म चिन्तन ,योग निद्रा में डूबा रह कर |
तब निशंक कोई वृद्ध हिरण , खुजली को मिटाने को तत्पर ||
मेरे तन से तन रगड़ रगड़ , वह हिरण हुआ अत्यंत निडर |
इतने सुंदर सुंदर ,क्या दिन मुझको ,मिल पायेंगे क्या मेरे शंकर ||
श्लोक क्र.38
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास
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.आयेंगे कभी क्या दिन मेरे ,अच्छे ,अच्छे , सुंदर, सुंदर |
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास ..
आयेंगे कभी क्या दिन मेरे , अच्छे ,अच्छे ,सुंदर ,सुंदर |
हिम गिरि की शिला , पर पद्मासन ,होगी , मेरी गंगा तट पर ||
और कर रहा होऊं ,ब्रह्म चिन्तन ,योग निद्रा में डूबा रह कर |
तब निशंक कोई वृद्ध हिरण , खुजली को मिटाने को तत्पर ||
मेरे तन से तन रगड़ रगड़ , वह हिरण हुआ अत्यंत निडर |
इतने सुंदर सुंदर ,क्या दिन मुझको ,मिल पायेंगे क्या मेरे शंकर ||
श्लोक क्र.38
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास
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