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भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास ..
कब होगी सफलता मुझे प्राप्त | जब सूनी रात्रि चांदनी से व्याप्त |
गंगा के तट पर रेतीले |हों नेत्र अश्रुओं से गीले ||
संसार प्रपंचों से मैं दूर | शिव शिव जप से जिव्हा हो पूर ||
कब होऊंगा प्रभु इसमें सफल | उस क्षण को जोहता मैं प्रति पल ||
श्लोक क्र.39
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
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भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास ..
कब होगी सफलता मुझे प्राप्त | जब सूनी रात्रि चांदनी से व्याप्त |
गंगा के तट पर रेतीले |हों नेत्र अश्रुओं से गीले ||
संसार प्रपंचों से मैं दूर | शिव शिव जप से जिव्हा हो पूर ||
कब होऊंगा प्रभु इसमें सफल | उस क्षण को जोहता मैं प्रति पल ||
श्लोक क्र.39
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
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