348 | 40 ..आराध्य देव शिव ही मेरे , और नदी मेरी गंगा पवित्र |
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास
आराध्य देव शिव ही मेरे , और नदी मेरी गंगा पवित्र |
कहीं दीन ना होना वृत , और काल ही मेरा परम मित्र ||
गिरि की कन्दरा ही मेरा घर , और सभी दिशाएं मेरा वस्त्र |
अब और अधिक क्या मैं बोलूँ , वट वृक्ष मेरी दयिता का चित्र ||
श्लोक क्र . 40
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
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भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास
आराध्य देव शिव ही मेरे , और नदी मेरी गंगा पवित्र |
कहीं दीन ना होना वृत , और काल ही मेरा परम मित्र ||
गिरि की कन्दरा ही मेरा घर , और सभी दिशाएं मेरा वस्त्र |
अब और अधिक क्या मैं बोलूँ , वट वृक्ष मेरी दयिता का चित्र ||
श्लोक क्र . 40
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
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