349 | 41 |..आशा नदी तेज है धार | बहुत बड़ा उसका आकार ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
आशा नदी तेज है धार | बहुत बड़ा उसका आकार ||
उसमें मनोरथ का है जल | तृष्णा की तरंग प्रति पल ||
राग द्वेष के ग्राह मगर | पक्षी तर्क दिखें नभ चर ||
धैर्य नाम के वृक्ष वहां | मोह तरंगें उठें जहाँ ||
इस नदिया के तट हैं चिंता | कैंसे? पार जाओगे मिंता ||
तेज बहुत नदिया ये बहती | कोई वस्तु जहाँ ना टिकती ||
धैर्य के वृक्ष टिकेंगे कब तक? | कई डूब गये उसमें अब तक ||
योगीश्वर विशुद्ध जो मन के | वे ही पार जा सकें तन के ||
शिव शिव जपें जो बारम्बार वे तो चले जाएंगे पार ||
आशा नदी तेज है धार | बहुत बड़ा उसका आकार ||
श्लोक क्र. 41
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
.................................................................२२ | 3|1997 ................................................
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
आशा नदी तेज है धार | बहुत बड़ा उसका आकार ||
उसमें मनोरथ का है जल | तृष्णा की तरंग प्रति पल ||
राग द्वेष के ग्राह मगर | पक्षी तर्क दिखें नभ चर ||
धैर्य नाम के वृक्ष वहां | मोह तरंगें उठें जहाँ ||
इस नदिया के तट हैं चिंता | कैंसे? पार जाओगे मिंता ||
तेज बहुत नदिया ये बहती | कोई वस्तु जहाँ ना टिकती ||
धैर्य के वृक्ष टिकेंगे कब तक? | कई डूब गये उसमें अब तक ||
योगीश्वर विशुद्ध जो मन के | वे ही पार जा सकें तन के ||
शिव शिव जपें जो बारम्बार वे तो चले जाएंगे पार ||
आशा नदी तेज है धार | बहुत बड़ा उसका आकार ||
श्लोक क्र. 41
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
.................................................................२२ | 3|1997 ................................................