326 / 21 / ..फलमलमशनाय स्वादु ...
आहार हेतु जब मिलते फल |
सु स्वादु मिले पीने का जल ||
जब सहज भूमि पर करें शयन |
जब वल्कल वस्त्र हम लेंय पहिन ||
तब धन रुपी मद से जो भ्रान्त |
जिनकी इन्द्रियाँ हर दम अशांत ||
क्यों उनके आगे कर गुहार ? |
सहते रहते हम तिरस्कार ||
श्लोक क्र.21
भर्तृहरि वैराग्य शतक काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
22 /10 /1996 मंगलवार
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आहार हेतु जब मिलते फल |
सु स्वादु मिले पीने का जल ||
जब सहज भूमि पर करें शयन |
जब वल्कल वस्त्र हम लेंय पहिन ||
तब धन रुपी मद से जो भ्रान्त |
जिनकी इन्द्रियाँ हर दम अशांत ||
क्यों उनके आगे कर गुहार ? |
सहते रहते हम तिरस्कार ||
श्लोक क्र.21
भर्तृहरि वैराग्य शतक काव्य भावानुवाद
22 /10 /1996 मंगलवार
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