327 / 22 /...विपुलह्र्दयेकेश्रीज्जगज्गनितम पुरा...अति विलक्षण विश्व महिमा |
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास
अति विलक्षण विश्व महिमा |
कहां खोजें उसकी उपमा ||
विपुल उर के हुए कई नर |
कई गये हैं धन्य बन कर ||
जो गये पर लोक को ||
बना गये इस लोक को ||
कई हुए हैं यहाँ दानी |
दान की जिनकी कहानी ||
सुनाने में थके वाणी |
जिनकी महिमा सबने जानी ||
त्याग कर तृण तुल्य जग को |
श्रेष्ठ समझा दान मग को ||
जगत जिनने तुच्छ जाना |
वैराग्य को ही श्रेष्ठ माना ||
हुए कोई कोई वीर ऐंसे |
पा लें चौदह भुवन जैसे ||
तनिक ना शान जिनको |
ना ही कुछ अभिमान उन को ||
पर यहाँ हैं कुछ लोग ऐंसे |
ग्राम कुछ पा जाएँ जैंसे ||
शीघ्र चढ़ता गर्व का ज्वर |
क्रोध से कांपें वे थर थर ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ. ओ.पी.व्यास
............................................................................
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद ..
अति विलक्षण विश्व महिमा |
कहां खोजें उसकी उपमा ||
विपुल उर के हुए कई नर |
कई गये हैं धन्य बन कर ||
जो गये पर लोक को ||
बना गये इस लोक को ||
कई हुए हैं यहाँ दानी |
दान की जिनकी कहानी ||
सुनाने में थके वाणी |
जिनकी महिमा सबने जानी ||
त्याग कर तृण तुल्य जग को |
श्रेष्ठ समझा दान मग को ||
जगत जिनने तुच्छ जाना |
वैराग्य को ही श्रेष्ठ माना ||
हुए कोई कोई वीर ऐंसे |
पा लें चौदह भुवन जैसे ||
तनिक ना शान जिनको |
ना ही कुछ अभिमान उन को ||
पर यहाँ हैं कुछ लोग ऐंसे |
ग्राम कुछ पा जाएँ जैंसे ||
शीघ्र चढ़ता गर्व का ज्वर |
क्रोध से कांपें वे थर थर ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ. ओ.पी.व्यास