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30 अक्तू॰ 2013

खोज रहे मंगल पर जीवन,,,,,



खोज रहे मंगल पर जीवन ,,,,,,,

खोज रहे मंगल पर जीवन,पर जीवन मेँ क्या है, मंगल |

सब ही ओर विषमता फैली, जहां देखिये दंगल ,दंगल ||

आदमी भूंखा प्यासा अब तक ,बना लिए कितने हैं नंगल||

कहाँ जाय करने को तपस्या ,काट दिये पूरे हैं जंगल ||

नदियां भी हैं हुईं प्रदूषित , नहीं सुनाई देती कल कल ||

कहाँ रहा गंगा जल है अब ,सभी ओर फैला गंदा जल ||

हरी भरी वसुधा रोती है , शुष्क गात मैला है आँचल ||

बुद्धि मान मानव तू इतना ,होता जाता है क्यों पागल||

''व्यास" करे क्या आस ,मन,तन बदन में फैली हल चल||

भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद