खोज रहे मंगल पर जीवन ,,,,,,,
सब ही ओर विषमता फैली, जहां देखिये दंगल ,दंगल ||
आदमी भूंखा प्यासा अब तक ,बना लिए कितने हैं नंगल||
कहाँ जाय करने को तपस्या ,काट दिये पूरे हैं जंगल ||
नदियां भी हैं हुईं प्रदूषित , नहीं सुनाई देती कल कल ||
कहाँ रहा गंगा जल है अब ,सभी ओर फैला गंदा जल ||
हरी भरी वसुधा रोती है , शुष्क गात मैला है आँचल ||
बुद्धि मान मानव तू इतना ,होता जाता है क्यों पागल||