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10 नव॰ 2013

बाबाजी ...हास्य व्यंग कविता

बाबाजी
बाबाजी ने चिलम चढ़ा कर , बोला यहाँ है सोना* |
फिर क्या था, चमचों ने वहाँ का , खोदा , कोना कोना ||
सोना भला था कहाँ वहाँ पर ?, अरे बाबा को था सोना* |
अब जो होना था वही हो चुका ,अब क्या रोना धोना ? ||
कह कवि " ओ . पी . व्यास ", करें अब हाँ जी , ना जी |
एक दिवस ये बाबाजी, सब को कर देंगे बाबा जी ||
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*नींद निकालना 

भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद