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30 अक्तू॰ 2013

कविता अन्तर्मन की भाषा ,,,,,,

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कविता अंतर्मन की भाषा यह कोई व्यापार नहीं |
है परिधान आत्मिक यह तो कोरा यह श्रंगार नहीं ||
दोहा दुहा दुग्ध कपिला {श्यामा गाय }का,चोपाई चोपाल हैं  |
सब जन को ही बने सबइया,सोरठा गौहर लाल हैं ||
जिस पर कविता मालामाल वह, क्या हुआ धन भण्डार नहीं |
कविता अन्तर्मन की भाषा, यह कोई व्यापार नहीं |
है परिधान आत्मिक यह तो, कोरा यह श्रंगार नहीं ||
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30/ 10 / 2013 बुधवार,,
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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद