कविता
कविता अन्तर्मन की भाषा, यह कोई व्यापार नहीं ।
है परिधान आत्मिक यह तो, कोरा यह श्रंगार नहीं ॥
[ 1 ]
गजल गुफ्तगू महबूबा से ,गीत मीत की हैं बातें ।
इसको लिखते बीत गए ,कितने दिन कितनी रातें ॥
यह वेदों की ऋचा है कविता ,बात कोई निस्सार नहीं ।
कविता अन्तर्मन की भाषा ,यह कोई व्यापार नहीं ।
है परिधान आत्मिक यह तो ,कोरा यह श्रंगार नहीं ॥
[ 2]
छंद बंद कमरे की बातें , कुंडली जन्म कुंडली है ।
इसमें बातें सभी समाईं ,कुछ अगली , कुछ पिछलीं हैं ॥
गहन सिंधु की मणि मुक्ताएं ,कवितायें बेकार नहीं ।
कविता अन्तर्मन की भाषा ,यह कोई व्यापार नहीं ॥
है परिधान आत्मिक यह तो ,कोरा यह श्रंगार नहीं॥ [ 3 ]
कविता अन्तर्मन की भाषा, यह कोई व्यापार नहीं ।
है परिधान आत्मिक यह तो, कोरा यह श्रंगार नहीं ॥
[ 1 ]
गजल गुफ्तगू महबूबा से ,गीत मीत की हैं बातें ।
इसको लिखते बीत गए ,कितने दिन कितनी रातें ॥
यह वेदों की ऋचा है कविता ,बात कोई निस्सार नहीं ।
कविता अन्तर्मन की भाषा ,यह कोई व्यापार नहीं ।
है परिधान आत्मिक यह तो ,कोरा यह श्रंगार नहीं ॥
[ 2]
छंद बंद कमरे की बातें , कुंडली जन्म कुंडली है ।
इसमें बातें सभी समाईं ,कुछ अगली , कुछ पिछलीं हैं ॥
गहन सिंधु की मणि मुक्ताएं ,कवितायें बेकार नहीं ।
कविता अन्तर्मन की भाषा ,यह कोई व्यापार नहीं ॥
है परिधान आत्मिक यह तो ,कोरा यह श्रंगार नहीं॥ [ 3 ]