श्लोक क्र. [ 1 ] भर्तृहरि वैराग्य शतक
[ द्वीतीय काव्यानुवाद ]...
नमस्कार हें साम्ब सदाशिव, मेरे आशुतोष भगवान |
चंचल चन्द्र कला हैं जटा में, तेजस्वी देदीप्यमान||
जिनने कामदेव पतंगा,भस्म किया वह लीलावान|
योगी जन के मोह के तंम को,करें नष्ट दे देते त्राण||
हरण करें अज्ञान के तम को ,ज्ञान दीप हैं हर,हर,हर||
डॉ.ओ.पी.व्यास 3/9/1996