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20 सित॰ 2017

श्लोक क्र. [ 1 ] द्वितीय काव्यानुवाद नमस्कार हें साम्ब सदाशिव मेरे आशुतोष भगवान भ, वै. शतक श्लो [1] द्वितीय काव्यानुवाद . |..डॉ.ओ.पी.व्यास

श्लोक क्र. [ 1 ] भर्तृहरि वैराग्य शतक 
[ द्वीतीय काव्यानुवाद  ]...
नमस्कार हें साम्ब  सदाशिव, मेरे आशुतोष भगवान |
चंचल  चन्द्र कला  हैं जटा  में, तेजस्वी  देदीप्यमान||
जिनने कामदेव पतंगा,भस्म किया वह लीलावान|
योगी जन के मोह के तंम को,करें नष्ट दे देते त्राण||
परम प्रकाशित ,महायोगी, ज्ञान प्रदीप हैं शिव शंकर|
हरण करें अज्ञान के तम को ,ज्ञान दीप हैं हर,हर,हर||
                डॉ.ओ.पी.व्यास 3/9/1996 
               

भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद