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20 दिस॰ 2016

[ 102 ] होनी ही होती है हरदम अनहोनी कभी नहीं होती | उठ भाग्य भाग्य कहने वाले क्यों सूरत ले बैठा रोती || डॉ.ओ.पी.व्यास

भर्तृहरि नीति शतक[ 102 ]
होनी ही होती है हरदम, अनहोनी कभी नहीं होती|
उठ भाग्य, भाग्य कहने वाले, क्यों सूरत ले बैठा रोती||
[ 1 ]

चाहे चढ़ जाओ सुमेरू पर, चाहे तो सिंधु में कूद पड़ो,
मत डरो कि जो भी कूदा है, लाता अमूल्य वह है मोती||
होनी ही होती है हरदम, अनहोनी कभी नहीं होती|
उठ भाग्य भाग्य कहने वाले,क्यों सूरत ले बैठा रोती||
[ २ ]
उठ रण कर शत्रु से क्यों डरता, मरने से डरता वह मरता,

जब काल तेरा आ  जाएगा, बुझना तो है एक दिन ज्योती||
होनी ही होती है हरदम, अनहोनी कभी नहीं होती|
उठ भाग्य भाग्य कहने वाले , क्यों सूरत ले बैठा रोती||
[ 3 ]
वाणिज्य करो, कृषि कार्य करो, सम्पूर्ण कलाओं को सीखो,
क़िस्मत तो हरदम जाग्रत है, किसने है, कहा वह है सोती||
होनी ही होती है, हरदम अनहोनी कभी नहीं होती|
उठ भाग्य भाग्य कहने वाले क्यों सूरत ले बैठा रोती ||
[ 4 ]
उठ जाग कि पंखों को फैला,  उठ दूर गगन में तू उड़ जा,
जब कर्म की रेखा सोती है, तो धन की रेखा भी सोती|
होनी ही होती है हरदम, अनहोनी कभी नहीं होती|
उठ भग्य भाग्य कहने वाले, क्यों सूरत ले बैठा रोती||
भर्तृहरि नीति शतक श्लोक क्र [ 102 ]
काव्यानुवाद डॉ.ओ.पी.व्यास
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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद