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20 दिस॰ 2016

[101 ] हें मन्द भाग्य , यह कर्म भूमि है ,तुमने जहाँ है जन्म लिया | क्यों नहीं सत्कर्मों को करते , क्यों नहीं करो तपश्चर्या || काव्यानुवाद डॉ.ओ.पी.व्यास

[ 101 ]
हें मन्द भाग्य, यह कर्म भूमि है, तुमने  जहां है जन्म लिया|
क्यों नहीं सत्कर्मों को करते?, क्यों नहीं करो, तपश्चर्या?
मूल्य वान ले स्वर्ण पात्र को, मणि, वैदूर्य से कर सज्जित|
चन्दन काष्ठ को जला जला, तिल सेंक करो हो तुम संचित||
स्वर्ण का हल निर्माण करा, जोत रहे भूमि किंचित|
मेंढ़ कपूर को काट बनाते, मूर्ख शिरोमणि तुम समुचित||
हाय वृथा ही जन्म लियो, ना कर्म कियो, ना हरि नाम लियो||

धिक्कार तुम्हें, हें भार स्वरूप, इतने दिन धरती पे, काहे जियो|| [ 101 ]

भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद