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हें
मन्द भाग्य,
यह कर्म भूमि है, तुमने जहां है जन्म लिया|
क्यों
नहीं सत्कर्मों को करते?,
क्यों नहीं करो, तपश्चर्या?
मूल्य
वान ले स्वर्ण पात्र को,
मणि, वैदूर्य से कर सज्जित|
चन्दन
काष्ठ को जला जला,
तिल सेंक करो हो तुम संचित||
स्वर्ण
का हल निर्माण करा,
जोत रहे भूमि किंचित|
मेंढ़
कपूर को काट बनाते, मूर्ख शिरोमणि तुम समुचित||
हाय
वृथा ही जन्म लियो,
ना कर्म कियो, ना हरि नाम लियो||
धिक्कार
तुम्हें,
हें भार स्वरूप, इतने दिन धरती पे, काहे जियो|| [ 101 ]