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भर्तृहरि नीति शतक
काव्यानुवाद ...डॉ.ओ.पी.व्यास
हें साधो सत्कर्म करो तुम, सत्क्रिया भगवती ही ध्याओ |
व्यर्थ करो मत श्रम अन्यों में, सत्कर्मों में ही मन लाओ ||
सत्कर्म से सज्जन, बनें, दुष्ट, मूर्ख, बनें, विद्वान् |
शत्रु, मित्र, सत्कर्म से होते, हों परोक्ष, प्रत्यक्ष, समान ||
विष भी सत्कर्मों के कारण, हों जाता है अमृत वान |
इसीलिए सत्कर्म ही पूजो, यही देव, भगवती, महान ||
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