146 श्लोक क्र. 10 ...
गंगा पतित स्वर्ग से होकर ,
आईं शंकर जी के माथ |
फिर हिम गिरि पर , फिर गिरीं भू पर ,
फिर हुईं सागर पात ||
इस से एक बात होती है
पूरी तरह से सिद्ध |
भ्रष्ट विवेकी होता जाए ,
अगर ना छोड़े ज़िद ||
गंगा पतित स्वर्ग से होकर ,
आईं शंकर जी के माथ |
फिर हिम गिरि पर , फिर गिरीं भू पर ,
फिर हुईं सागर पात ||
इस से एक बात होती है
पूरी तरह से सिद्ध |
भ्रष्ट विवेकी होता जाए ,
अगर ना छोड़े ज़िद ||