घर और मकान ?
[ कविता ...डॉ. ओ. पी . व्यास गुना म.प्र. ]
२२ /७/२०१६ शुक्र वार
[ एक चिंतन परक रचना ]
घर कहते हैं किसको भैय्या ,
किसको कहें मकान हैं /
घर होता है , जैसे नाक [ इज्जत ] है ,
और मकान तो कान हैं //
सुनते रहो करो पर मन की ,
ना समझो वह पास करो /
इसी लिए दो कान बनाए ,
बहुत सा ट्रेफिक बाई पास करो ll
घर में अनेकों रह सकते हैं ;
पर मकान में भूत रहें \
बात समझ लो गहरी है यह ,
घर में तो देव दूत [ फरिश्ते ] रहें \\
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[ कविता ...डॉ. ओ. पी . व्यास गुना म.प्र. ]
२२ /७/२०१६ शुक्र वार
[ एक चिंतन परक रचना ]
घर कहते हैं किसको भैय्या ,
किसको कहें मकान हैं /
घर होता है , जैसे नाक [ इज्जत ] है ,
और मकान तो कान हैं //
सुनते रहो करो पर मन की ,
ना समझो वह पास करो /
इसी लिए दो कान बनाए ,
बहुत सा ट्रेफिक बाई पास करो ll
घर में अनेकों रह सकते हैं ;
पर मकान में भूत रहें \
बात समझ लो गहरी है यह ,
घर में तो देव दूत [ फरिश्ते ] रहें \\
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