[डॉ.ओ.पी.व्यास गुना म.प्र.]
गौ माता खड़ी दरवाजे पर,
कातर द्रष्टि से ताक रही।
प्यारे बेटे रोटी दे दो,
आशा से वह है झांक रही।
अपना माँ बेटे का रिश्ता तो ,
बहुत ही अधिक पुराना है।
गोपाल तुम्हारे परमेश्वर ,
उनकी भी याद दिलाना है।
श्री राम के जो थे रहे पूर्वज ,
दिलीप की कथा सुनाना है ।
ऋषि मुनि गौ पाला करते थे ,
वह कामधेनु दिखलाना है।
शायद स्मृति पर जोर पड़े ,
कुछ याद तुम्हें आये शायद।
जो पहली रोटी गाय की थी ,
यादों में आ जाए शायद।
जो चरनोई की भूमि रही ,
जिस पर सुख से मैं चरती थी।
दूध पौष्टिक दे दे कर ,
तुमको मैं पाला करती थी ।
वह भूमि कहाँ है प्यारे बेटो ,
उस पर मकान बनबाए हैं।
सब ने मिल कर उस भूमि से ,
कई कई करोड़ कमाए हैं।
मुझ को आवारा पशु कह कर ,
सडकों पर मरने छोड़ दिया।
मैं भूखी प्यासी फिरती हूँ ,
माँ का रिश्ता क्यों तोड़ दिया ?
अब मुझ को बासी कूसी ही ,
कुछ रोटी खाने को दे दो।
तुम तो ए सी कूलर में हो ,
थोड़े से दाने तो दे दो ।
अपनी करनी का फल तो बच्चो ,
सबको ही भोगना पड़ता है।
अब नकली दूध यूरिया का ,
सबको ही पीना पड़ता है।
सोचो थोडा चिंतन कर लो ,
चाहो तो मुझे बचा लो तुम।
वरना मेरा बीफ बना ,
होटल में खूब पचा लो तुम।
मैंने सोचा कि देश अभी ,
जकड़ा है गुलामी जंजीरों से।
आजादी जब आ जाएगी ,
मुझे मुक्ति मिलेगी पीरों से ।
फिर देश हुआ आज़ाद ,
तुमने मेरे बैलों का चिन्ह लिया।
मैं सोच रही थी अब मेरे ,
दुखों का ताना छिन्न हुआ ।
और बहुत वक़्त निकला ,
मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी ।
और चलती रही बहुत अर्से ,
मेरी वो बैलों की जोड़ी।
और फिर आयीं इंदिरा गांधी ,
जो पूरी ही एक आंधी थीं।
गौ बछड़े का ही चिन्ह लिया ,
मैंने उम्मीदें बांधी थीं \\
धीरे धीरे गौ बछड़े की जगह ,
आ गया हाथ का था पंजा ।
और शायद मेरे दुखों की ,
आ गयी समाप्ति की है संजा।
और तभी संत बिनोबा ने ,
मेरे खातिर कुर्बानी दी।
शंकराचार्य निरंजन देव ने ,
मेरे आन्दोलन को वाणी दी ।
पर फिर भी मेरी सुध ना ली;
हाय मेरा दुर्भाग्य रहा ।
जब अटल बिहारी जी आये ,
शायद प्रबल अब भाग्य रहा।
एक व्यक्ति ने उसी समय ,
मेरा ही चारा चबा लिया।
मैं सोच रही गौ पालक ने ,
क्यों है ऐंसा काम किया ।
खैर बहुत दिनों के बाद ,अब,
नये लोग फिर पाए हैं ।
मैं सोच रही हूँ अब शायद ,
मेरे भी अच्छे दिन आये हैं ।।
अपनी करनी का फल तो बच्चो ,
सबको ही भोगना पड़ता है।
अब नकली दूध यूरिया का ,
सबको ही पीना पड़ता है।
सोचो थोडा चिंतन कर लो ,
चाहो तो मुझे बचा लो तुम।
वरना मेरा बीफ बना ,
होटल में खूब पचा लो तुम।
मैंने सोचा कि देश अभी ,
जकड़ा है गुलामी जंजीरों से।
आजादी जब आ जाएगी ,
मुझे मुक्ति मिलेगी पीरों से ।
फिर देश हुआ आज़ाद ,
तुमने मेरे बैलों का चिन्ह लिया।
मैं सोच रही थी अब मेरे ,
दुखों का ताना छिन्न हुआ ।
और बहुत वक़्त निकला ,
मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी ।
और चलती रही बहुत अर्से ,
मेरी वो बैलों की जोड़ी।
और फिर आयीं इंदिरा गांधी ,
जो पूरी ही एक आंधी थीं।
गौ बछड़े का ही चिन्ह लिया ,
मैंने उम्मीदें बांधी थीं \\
धीरे धीरे गौ बछड़े की जगह ,
आ गया हाथ का था पंजा ।
और शायद मेरे दुखों की ,
आ गयी समाप्ति की है संजा।
और तभी संत बिनोबा ने ,
मेरे खातिर कुर्बानी दी।
शंकराचार्य निरंजन देव ने ,
मेरे आन्दोलन को वाणी दी ।
पर फिर भी मेरी सुध ना ली;
हाय मेरा दुर्भाग्य रहा ।
जब अटल बिहारी जी आये ,
शायद प्रबल अब भाग्य रहा।
एक व्यक्ति ने उसी समय ,
मेरा ही चारा चबा लिया।
मैं सोच रही गौ पालक ने ,
क्यों है ऐंसा काम किया ।
खैर बहुत दिनों के बाद ,अब,
नये लोग फिर पाए हैं ।
मैं सोच रही हूँ अब शायद ,
मेरे भी अच्छे दिन आये हैं ।।