[ 124 ] अखंड यज्ञ [ हवन ]
[ डॉ. ओ. पी. व्यास गुना म.प्र. ]
[ डॉ. ओ. पी. व्यास गुना म.प्र. ]
[ २६/५/२०१६ ]
[इस रचना का भाव गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर की गीतांजली की रचना से लिया है |]
एक अखंड यज्ञ [ हवन ] जारी है |
गये सभी बारी बारी हैं ||
हम सब उसकी समिधाएँ हैं ,
अगले होम की तैयारी है ||
आर्य , अनार्य , हूण ,शक आये ,
यवन ,आंग्ल रहे भारी हैं ||
कहां हैं ब्राह्मण ? ,कहां हैं हरिजन ? ,
कहां गये छत्र धारी हैं ? ||
कल होगा फिर नया सबेरा ,
दुःख की रैन अभी कारी है ||
प्रकट हो रहा अब नया देवता ,
जननी जगी रात सारी है ||
रूद्र की वीणा ध्वनित हो रही ,
ओम ध्वनि सब पर तारी[समाई ] है ||
"गीतांजलि" ने नई द्रष्टि दी ,
" व्यास" गुरु देव का आभारी है ||
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