[ 125 ] संकल्प
डॉ. ओ.पी व्यास[ गुना म. प्र. ]
[२/६/२०१६ गुरुवार]
[ 1 ]
हम तो आज से नहीं सदा से ,
एक बात ही हैं सुनते |
मानव के चमड़े के जूते,
कभी नहीं देखे बनते ||
[ २ ]
हम ने सब कुछ लिया यहीँ से ,
कुछ भी तो है नहीं दिया |
हमने अँधेरे में अब केवल ,
जलता देखा एक दिया ||
[ ३ ]
अब तो कुछ ही दिन ये शेष हैं ,
अंतिम एक बचा मौक़ा |
क्यों ना हम भी एक लगा दें ,
चलते चलते एक चौका ||
[ ४ ]
इसीलिए जो शेष मात्र है ,
हम पर केवल एक विकल्प |
देह दान का लेते हैं ,
जीवित रहते ही संकल्प ||
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