सावन के झूले ?
सत युग में डलते रहे , सावन में झूले।
कलि जब से आया, वह हम हैं भूले॥
नज़र हमारी बदल गई ,हैं वे ही आँखें।
वे ही वृक्ष,वे ही हैं पत्ते, हैं वे ही शाखें॥
अब उन ही वृक्षों पर डलते, फांसी के फंदे।
हवस ,वासना में डूबों के, बदल गये धंधे॥
मगर ध्यान से देखें, तो ये फंदे हैं उनको ।
बहिन,बेटीयाँ याद नहीं, आज रहीं जिनको ॥
बुरे काम का बुरा नतीजा।
आज मरे कल होगा तीजा।
[डॉ .ओ. पी. व्यास गुना म.प्र.]
[22/7/2014 मंगलवार ]
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