जिसके तन में प्रिय शील रहे ....भर्तृहरी शतक काव्यानुवाद
[डॉ. ओ.पी.व्यास गुना म. प्र .]
जिसके तन में प्रिय शील रहे ,
वह अखिल विश्व को अतिप्रिय है।
उसे महा सिन्धु है , क्षुद्र नदी
और है सुमेरु सादा पत्थर
हैं सिंह उसे मृग के जैसे ,
फूलों की माला हैं विषधर ।
औरों के लिए , विष की वर्षा ,
वह उसके लिए सुधा मय है।
जिस के तन में प्रिय शील रहे ,
वह अखिल विश्व को अति प्रिय है।