गजल
हम खुद परस्त कितने दुनियाँ में हो रहे हैं ।
हम चाहते हैं दुनियाँ सजदा करे हमारा ,
ओहदों को अपने अपनी पीठों पै ढो रहे हैं ॥
दुनिया ने ली अँगड़ाई और जाग चुकी कब से ,
हम ख़्वाब की दुनियाँ में सपने सँजो रहे हैं ॥
बाग ए वफा की खाक कर दे खाद चमन में ,
हम बेवफाइओ के काँटों को बो रहे हैं ॥
जिनसे हमें सुकूँ की उम्मीद थी थोड़ी सी ,
देखा करीब से तो वे खुद ही रो रहे हैं ॥
उम्मीद '' व्यास '' उनसे किस तरह हो भंवर में ,
साहिल पै ही जो किश्ती खुद की डुबो रहे हैं ॥
डॉ .ओ .पी .व्यास गुना म.प्र.