पृष्ठ

26 फ़र॰ 2014

गज़ल ...हम खुद परस्त कितने ...डॉ .ओ .पी . व्यास

गजल

हम खुद परस्त कितने दुनियाँ में हो रहे हैं ।
ख़ुद की   खुदी में डूबे ,खुद में ही खो रहे हैं ॥

हम चाहते हैं दुनियाँ सजदा करे हमारा ,
ओहदों को अपने अपनी पीठों पै ढो रहे हैं ॥

दुनिया ने ली अँगड़ाई और जाग चुकी कब से ,
हम ख़्वाब की दुनियाँ में सपने सँजो रहे हैं ॥

बाग ए वफा की खाक कर दे खाद चमन में ,
हम बेवफाइओ के काँटों को बो रहे हैं ॥

जिनसे हमें सुकूँ की उम्मीद थी थोड़ी सी ,
देखा करीब से तो वे खुद ही रो रहे हैं ॥

उम्मीद '' व्यास '' उनसे किस तरह हो भंवर में ,
साहिल पै ही जो किश्ती खुद की डुबो रहे हैं ॥

                  डॉ .ओ .पी .व्यास गुना म.प्र.



भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद